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लवक

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कोशिका विज्ञान
हरितलवक
विभिन्न प्रकार के लवक

लवक पादप कोशिकाओं के कोशिका द्रव में पाए जाने वाले गोल या अण्डाकार रचना हैं, इनमें पादपों के लिए महत्त्वपूर्ण रसायनों का निर्माण होता है। हरितलवक नामक हरे रंग के लवक में जीव जगत की सबसे महत्त्वपूर्ण जैव रासायनिक क्रिया प्रकाश-संश्लेषण होती है। हरे रंग के अतिरिक्त अन्य रंगों वाले लवकों को वर्णलवक कहते हैं, इनसे ही फूलों एवं फलों को रंग प्राप्त होता है। रंगहीन लवकों को अवर्णलवक कहते हैं जिनका मुख्य कार्य भोजन संग्रह में सहायता करना है।[1] आकृति यह अण्डाकार गोलाकार तन्तुनुमा होता है जो पूरे कोशिका द्रव्य मे फैले रहता है जो दो झिल्लियों से घिरा रहता है। इसके भीतर पाए जाने वाले खाली स्थान को पीठिका कहते है जो एक तरल पदार्थ से भरा रहता है जिसे आधात्री कहा जाता है।

लवक सभी पादप कोशिकाओं एवं कुछ आदिजन्तु जैसे यूग्लीना में मिलते हैं। ये आकार में बड़े होने के कारण सूक्ष्मदर्शी से आसानी से दिखाई पड़ते हैं। इसमें विशिष्ट प्रकार के वर्णक मिलने के कारण पौधे भिन्न-भिन्न रंग के दिखाई पड़ते हैं। विभिन्न प्रकार के वर्णकों के आधार पर लवक कई तरह के होते हैं जैसे- हरितलवक, वर्णलवकअवर्णलवक

हरितलवकों में पर्णहरित वर्णक व कैरोटिनॉइड वर्णक मिलते हैं जो प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक प्रकाशीय ऊर्जा को संचित रखने का कार्य करते हैं। वर्णलवकों में वसा विलेय कैरोटिनॉइड वर्णक जैसे कैरोटीन, पर्णपीत व अन्य दूसरे मिलते हैं। इनके कारण पादपों में पीले, नारंगी व लाल रंग दिखाई पड़ते हैं। अवर्णलवक विभिन्न आकृति एवं आकार के रंगहीन लवक होते हैं जिनमें खाद्य पदार्थ संचित रहते हैं: मण्डलवक में मण्ड के रूप में कार्बोहाइड्रेट, तैललवक में तेल, वसा तथा प्रोटीन लवक में प्रोटीन का भण्डारण होता है।

हरित पौधों के अधिकतर हरितलवक पर्णमध्योतक कोशिकाओं में पाए जाते हैं। हरितलवक अण्डाकार, गोलाकार, चक्रिक व फीते के आकार के कोशिकांग होते हैं जो विभिन्न दैर्घ्य (5-10 माइक्रोमीटर) व विस्तार (2-4 माइक्रोमीटर) के होते हैं। इनकी संख्या भिन्न हो सकती है जैसे प्रत्येक कोशिका में एक (क्लेमाइडोमोनास - हरित शैवाल) से 20 से 40 प्रति कोशिका पर्णमध्योतक कोशिका हो सकती हैं।

हरितलवक द्विझिल्ली युक्त होते हैं। उपरोक्त दो में से इसकी भीतरी लवक झिल्ली अपेक्षाकृत कम पारगम्य होती है। हरितलवक के अन्तर्झिल्ली से घिरे हुए भीतर के स्थान को पीठिका कहते हैं। पीठिका में चप्टे, झिल्लीयुक्त थैली जैसी संरचना संगठित होती हैं जिसे थाइलकॉइड कहते हैं। थाइलेकॉइड सिक्कों के चट्टों की भाँति ढेर के रूप में मिलते हैं जिसे ग्रेना (एकवचन - ग्रेनम) या अंतरग्रेना थाइलेकोइड कहते हैं। इसके अलावा कई चपटी झिल्लीनुमा नलिकाएं जो ग्रेना के विभिन्न थाइलकॉइड को जोड़ती है उसे पीठिका पटलिकाएं कहते हैं। थाइलकॉइड की झिल्ली एक रिक्त स्थान को घेरे होती जिसे अवकाशिका कहते हैं। हरितलवक की पीठिका में बहुत प्रकिण्व मिलते हैं जो कार्बोहाइड्रेटप्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक हैं। इनमें छोटा द्विलड़ी, वृत्ताकार डीएनए अणु व राइबोसोम मिलते हैं। हरितलवक थाइलकॉइड में उपस्थित होते हैं। हरितलवक में पाए जाने वाला राइबोसोम (70s) कोशिकाद्रव्यी राइबोसोम (80s) से छोटा होता है।

सन्दर्भ

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  1. त्रिपाठी, नरेन्द्र नाथ (मार्च २००४). सरल जीवन विज्ञान, भाग-२. कोलकाता: शेखर प्रकाशन. पृ॰ ४-५. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)
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